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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-45

    

    अध्याय-15   
    काली छड़ी की मौत
    भाग-3

    ★★★
    
    दरवाजा खुला तो सामने बूढ़ी औरत पूरे गुस्से में दिखाई दी। उसके जबड़े कसे हुए थे। आंखें लाल हो चुकी थी। उसके आसपास घूमने वाली मक्खियों की भिन्न-भिन्नाहट भी ज्यादा थी। अचानक बूढ़ी औरत ने खुद को जमीन के करीब किया। ‌ जमीन के करीब करने के बाद उसने अपने पैर जमीन पर रखें। इसके ठीक बाद उसने अपने दोनों हाथों को फिर से फैला दिया।
    
    ऐसा करते ही मक्खियां उसके शरीर से अलग होकर आर्य की तरफ बढ़ने लगी। जैसे ही मक्खियां नजदीक आई आर्य ने आग वाली लकड़ी को सामने कर दिया। लकड़ी के पास आते ही सारी मक्खियां इधर-उधर की दो दिशाओं में बंट गई। आधी मक्खियां एक तरफ जा रही थी तो आधी मक्खियां एक तरफ। जबकि दोनों के बीच में आर्य लकड़ी के साथ खड़ा था।
    
    जैसे ही सभी मक्खियां उसके करीब से चली गई उन्होंने उसके पीछे इकट्ठा होना शुरू कर दिया। वहां उन्होंने खुद को वापस इकट्ठा किया और आर्य की तरफ आने लगी। आर्य ने यहां भी आग वाली लकड़ी को आगे कर दिया। मक्खियां फिर से अपने दिशा में बदलाव करने लगी।
    
    वहीं दूसरी ओर बूढ़ी औरत दरवाजे से आगे बढ़ी और उसने अपने हाथ में पकड़े लकड़ी वाले डंडे को ऊपर उठा लिया। आर्य की पीठ उसकी और थी इसलिए उसका ध्यान इस बात पर नहीं था कि बूढ़ी औरत उसके पीछे आ रही है। 
    
    सभी मक्खियों ने उसके पास से अपनी दिशा बदली और आर्य ने मुड़ कर पीछे देखा। बूढ़ी औरत उसके ठीक करीब खड़ी थी। बूढ़ी औरत ने तेजी से कुल्हाड़ी का वार कर दिया।
    
    वार से बचाव के लिए आर्य के हाथ बड़ी मुश्किल से आगे आए। जैसे तैसे कर उसने कुल्हाड़ी को पकड़ते हुए अपना बचाव कर लिया। कुल्हाड़ी को पकड़ने की वजह से उसे धक्का लगा‌ जिससे वह पास वाली दीवार से जा टकराया। दीवार उससे बस एक या दो कदम की दूरी पर ही थी। ‌ दीवार से टकराने के बाद आर्य ने कुल्हाड़ी पर अपनी पकड़ नहीं छोड़ी। उसने इस चीज का फायदा उठाया और बूढ़ी औरत को झटका देते हुए कुल्हाड़ी उससे खींच ली।‌ झटका देने की वजह से बूढ़ी औरत पीछे मेज से टकराकर नीचे गिर गई।

    वही मक्खियां जो अब तक अपनी दिशा बदल चुकी थी उन्होंने वापिस आर्य की तरफ आना शुरू कर दिया था। कुछ देर पहले आर्य के हाथ में जो जलती हुई लकड़ी थी वो बूढ़ी औरत का वार संभालते भक्त नीचे गिर गई थी। 
    
    आर्य तुरंत कुल्हाड़ी को छोड़कर जलती हुई लकड़ी की तरफ बढ़ा। उसने लकड़ी पकड़ी और वापस से मक्खियों के सामने कर दिया। इस बार वो पूरी तरह से खड़ा नहीं हो सका था इसलिए उसने बैठे-बैठे ही मक्खियों की दिशा बदली। 
    
    तभी उसे इस बात का अहसास हुआ की नीचे का फर्श जल रहा है। घर में बना फर्श भी लकड़ी का था। एक तरह से कहा जाए तो ज्यादातर घर लकड़ी का ही बना हुआ था। ‌ इससे पहले आर्य कुछ और सोचता या समझता अचानक किचन वाला हिस्सा सीधे नीचे जा गिरा और वहां से आग की भयानक लपटें बाहर निकलने लगी।
    
    दिशा बदलने के बाद मक्खियां उसी और गई थी। उनमें से काफी सारी मक्खियां अचानक आग निकलने की वजह से उनके हवाले हो गई। ‌जबकि बाकी की बची हुई मक्खियां इधर-उधर अपने बचने का रास्ता ढूंढने लगी।
    
    बूढ़ी औरत की नजर किचन वाले हिस्से की तरफ गई तो वह चीख पड़ी। चीखते चीखते उसने अपने हाथों उस और किए ‌और आर्य को गुस्से और दुख भरी आवाज में कहा “तुमने यह ठीक नहीं किया। शैतान तुम्हें इस चीज के लिए कभी माफ नहीं करेगा। देखना, देखना वह मेरी मौत का बदला जरूर लेगा। सब मेरी मौत का बदला लेंगे। हर कोई तुम्हें बुरी तरह से तड़पाएगा।”
    
    आर्य ने बूढ़ी औरत को कहा “मुझे उन सभी का इंतजार रहेगा। यहां तक कि उसका भी जिसके लिए मैं बना हुं।”
    
    इतना कहकर उसने बूढ़ी औरत को वही छोड़ा और दरवाजे की तरफ बढ़ने लगा।‌ बूढ़ी औरत नीचे गिरी हुई थी तो उसने रेंगते हुए बाहर जाने की कोशिश की। मगर उसकी कोशिश में वह शिवाय आगे खिसकने और कुछ भी नहीं कर सकी। 
    
    आर्य दरवाजे से बाहर निकलकर थोड़ा आगे आया तो पीछे जोरदार भयानक धमाका हुआ। आर्य ने मुड़ कर पीछे नहीं देखा। उसकी पीठ के पीछे काली छड़ी का बंगला धुं धुं तबहा होता रहा। 
   
    काफी दूर जाकर आर्य ने पीछे पलट कर देखा। आग की लपटें जहां वो खड़ा था वहां तक रोशनी कर रही थी। ऊपर आसमान में उड़ती हुई लपटों के बीच उड़ने वाली मक्खियां भी झुलस रही थी। खुद का बचाव करने वाली मक्खियां आग की जद से बाहर नहीं जा पा रही थी। 
    
    आर्य वही बंजर जमीन पर बैठ गया और जलते हुए घर को देखने लगा। वह कुछ देर तक घर को जलते हुए देखता रहा जिसके बाद अचानक उसके शरीर में बदलाव होने लगे। वह अपनी जगह पर बैठे-बैठे गायब हो रहा था। आर्य ने अपनी आंखें बंद कर ली जिसके बाद उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह खुद में ही खींचा जा रहा है। धीरे-धीरे एहसास का होना बढ़ा और वह अचानक ही पूरी तरह से गायब हो गया।
    
    उसकी आंख खुली तो वह उसी जगह पर था जहां से गया था। यानी उस हाॅल में जहां उसकी अचार्य वर्धन के साथ लड़ाई हो रही थी। आर्य अपनी जगह से खड़ा हुआ और उसने अपनी रोशनी की तलवार को संभाला। उसके आसपास का वक्त अभी भी थमा हुआ था।
    
    वह तेजी से उस हमले के पास गया जहां उसका हमला आचार्य वर्धन और काली की तरफ बढ़ रहा था। वहां जाकर उसने अपनी रोशनी वाली तलवार को हमले के आगे कर दिया और उसकी दिशा जमीन की तरफ कर दी। जल्द ही थमा हुआ वक्त खत्म हुआ और उसने अपने हिसाब से चलना शुरू कर दिया। ऐसा होते ही हमला तलवार से टकराया और जमीन की तरफ जाकर खत्म हो गया। 
    
     अचार्य वर्धन के हाथ में जो काली छड़ी थी वह धू धू कर जलने लगी। जबकि आचार्य वर्धन वहीं बेहोश होकर गिर गए।
    
    उनके गिरते ही हिना और आयुध तेजी से आर्य की तरफ बढ़े। वही अचार्य ज्ञरक भी धीरे-धीरे उसी की ओर आ रहे थे।
    
    हिना ने पास आते ही आर्य से पूछा “यह आखिर तुमने क्या किया? इस हमले को काली छड़ी से टकराने क्यों नहीं दिया? और यह काली छड़ी जल कैसे गई? अचार्य वर्धन कैसे नीचे गिर गए?”
    
    हिना ने एक साथ सवालों की बौछार कर दी थी। वही आयुध ने भी सवाल पूछते हुए कहा “हां बताओ आर्य, तुमने यह सब आखिर क्या किया? प्लेन के मुताबिक तो यह सब नहीं होना चाहिए था। बल्कि यहां तो हमले का काली छड़ से टकराना चाहिए था और फिर उसे खत्म हो जाना चाहिए था?”
    
    आर्य बोला “काली छड़ी हमले के टकराने से पहले ही खत्म हो चुकी है। इसीलिए मैंने हमले की दिशा को बदल दिया। अगर मैं हमले की दिशा को नहीं बदलता तो यह हमला काली छड़ी को खत्म ना कर अचार्य वर्धन को खत्म कर देता।”
    
    “मगर वह कैसे आर्य...!!” आचार्य ज्ञरक पास आते हुए बोले। उन्होंने आर्य की बात को सुन लिया था।
    
    आर्य बोला “यह काफी लंबी कहानी है। जब हमला काली छड़ी की ओर जा रहा था तो काली छड़ी ने थमें हुए वक्त को शुरू कर दिया था। थमें हुए वक्त को शुरू करने के बाद उसने मुझे अपने पास बुलाया। अपनी दुनिया में। वहां उसने मुझ से सौदेबाजी करनी चाहिए। वह अपनी जान के बदले अपना एक बार इस्तेमाल करने की इजाजत दे रही थी। उसके पास बचने के लिए कोई रास्ता नहीं था तो मैंने सौदेबाजी की बजाय उसे शैतान का साथ ना देने के लिए कहा। मैंने सोचा अगर वह शैतान का साथ नहीं देगी तो आने वाले समय में आश्रम का भला हो सकता है।” आर्य ने अपनी और काली छड़ी वाली बात को ठीक ठाक तरीके से बताया। बताने के बाद उसने कहा “जब किसी भी तरीके से बात नहीं बनी तो मैंने काली छड़ी को उसी के बगल में जला कर खत्म कर दिया। इसी में सभी की भलाई थी। काली छाड़ी के बिना शैतान अभी जितना ताकतवर है उससे ज्यादा ताकतवर नहीं हो पाएगा।”
    
    हिना बोली “ काली छड़ी के बिना तो वह वापस ही नहीं आ पाएगा।”
    
    आचार्य ज्ञरक हिना से बोले “काली छड़ी के और भी बहुत सारे काम थे। शैतान को वापस लाने के लिए उन्हें उनकी रोशनी चाहिए थी, जो कभी नहीं खत्म हो सकती। वह लोग हमारा पीछा नहीं छोड़ने वाले।” उन्होंने जल्दी छड़ी की तरफ देखा। “यह लड़ाई बहुत लंबी चलने वाली है।” वहां छड़ी के डंडे वाला हिस्सा तो जल गया मगर रोशनी वाला हिस्सा ज्यों का त्यों था। 
    
    आचार्य ज्ञरक ने उसे देखने के बाद आर्य के कंधे को थपथपाया “वाह बच्चे...” वह शाबाशी देते हुए बोले “तुमने काफी सूझबूझ और समझदारी का परिचय दिया। तुमने ना सिर्फ आश्रम के बारे में सोचा बल्कि पूरी इंसानियत जाति के बारे में भी सोचा। तुम्हारी भावना इंसानियत के लिए थी। इंसानों को बचाने के लिए थी। यह बात भी काबिले तारीफ है कि तुमने काली छड़ी को खत्म किया। उस काली छड़ी के सौदेबाजी के जाल में न जाने कितने लोगों को फंसाया होगा। अपनी ताकत की वजह से लोगों को मजबूरी में आकर उसका इस्तेमाल करना पड़ता था, और वह उसका नाजायज फायदा उठाती थी। हमारे आश्रम के आचार्य, आचार्य वर्धन ने भी उसका इस्तेमाल मजबूरी में किया। पहली बार अंधेरी परछाइयां हम पर हावी थी अगर वो उसका इस्तेमाल ना करते तो हममें से कोई भी जिंदा ना बचता। वहीं दूसरी बार में उन्हें एक अवसर दिया गया कि वह अपनी प्रजाति की‌ जान बचा ले। यहां वह अपनी प्रजाति के मोह में बंध गए थे और उन्होंने जो भी कदम उठाए वह अपनी प्रजाति के लिए ही उठाए। यकीनन उनके रास्ते गलत थे मगर इरादे नहीं। इस बात को बिल्कुल भी नहीं नकारा जा सकता।”‌ सब कह कर अचार्य ज्ञरक ने दोबारा आर्य की पीठ को थपथपाया। इसके बाद उन्होंने आचार्य वर्धन की तरफ देखा जो नीचे बेहोश पड़े थे। वह उस तरफ चल पड़े।
    
    उनके जाने के बाद आयुध ने आर्य को कहा “क्या बात है मेरे भाई तुमने तो झंडे गाड़ दिए। मतलब काली छड़ी जैसी चीज को उसके दुनिया में ही जाकर खत्म करके आ गए। ऐसा कारनामा आज तक किसी ने भी नहीं किया। तुम पहले ऐसे शख्स हो जिसने यह कारनामा किया है। सच में तुम कमाल के हो।” आखिर में आयुध ने आर्य को गले से लगा लिया। गले से लगाने के बाद वह आचार्य ज्ञरक की तरफ चल पड़े ताकि उनकी मदद कर सके।
    
    आयुध के जाने के बाद हिना और आर्य ही एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े थे। हिना अपने बालों को ठीक कर रही थी। उसने बालों को ठीक करते हुए आर्य से कहा “तुमने सच में एक अच्छा काम किया है। तुम्हारी जितनी भी तारीफ हो रही है तुम उसे डिजर्व करते हो। यहां आश्रम में नए होने के बावजूद, ना तुमने सिर्फ आश्रम के भले के बारे में सोचा बल्कि पूरी दुनिया के बारे में भी सोचा। यह चीज तुम्हारी सोच और तुम्हारी सोच के दायरे को दिखाती। जैसा की मेरे भाई ने कहा तुम कमाल के हो...” हिना के गाल लाल होने लगे थे। वह बोली “..... तो उसने बिल्कुल सही कहा है। तुम वाक्य में ही कमाल के हो।” यह कहकर उसने अचानक आर्य को गले लगा लिया। यह चीज आर्य के लिए भी अनएक्सपेक्टेड थीं। वही आयुध की नजर उन दोनों के गले लगते हुए दृश्य पर गई तो उसने अपना सर झटकाया। “यह दोनों कभी नहीं सुधरेंगे। अब मेरी बहन ही नहीं संभल रही... तो लड़के को संभाल कर क्या फायदा।” 
    
    उसने सांस बाहर छोड़ी और हाथ आगे बढ़ाकर आचार्य वर्धन को उठाया। आचार्य ज्ञरक भी उसे उठाने में पहले ही मदद‌ कर रहे थे। आखिर में सभी बाहर जा रहे थे। एक बहुत बड़ी मुसीबत से निकल कर।
       
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